11 September 2005

विभिन्न विचार

( हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचार हैं )
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आज हिन्दी का संकट यह नहीं है कि वह अविकसित भाषा है, यह नहीं है कि उसमें ज्ञान-विज्ञान की शब्दावली नहीं है, यह नहीं है कि उसके बोलने वालों की संख्या कम होती जाती है और यह नहीं है कि विधान में उसे उचित स्थान नहीं मिला हुआ है, उसका मूल संकट यह है कि हिन्दी भाषी जन में आज चरित्र-बल नहीं रह गया है।
-डॉ० धर्मवीर भारती

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राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वसामान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं है। मेरे विचार में हिन्दी ही ऐसी भाषा है।
-लोकमान्य तिलक

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जब तक इस देश का राज काज अपनी भाषा में नहीं चलेगा, तब तक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज्य है।
-मोरारजी देसाई

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''चूँकि भारतीय एक होकर एक समन्वित संस्कृति का विकास करना चाहते हैं, इसलिए सभी भारतीयों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि वे हिन्दी को अपनी भाषा समझकर अपनाएँ।''
-डॉ० भीमराव अम्बेडकर

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हिन्दी देश के बड़े हिस्से में बोली जाती है। हमें इस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करना ही चाहिए।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर

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हिन्दी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
-महर्षि दयानन्द सरस्वती

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देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी ही हो सकती है।
-लाल बहादुर शास्त्री

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हिन्दुस्तान को हमें अगर एक राष्ट्र बनाना है तो राष्ट्रभाषा हिन्दी ही हो सकती है।
-महात्मा गाँन्धी

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प्रान्तीय ईर्ष्या, द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी से नहीं।
-सुभाष चन्द्र बोस

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हिन्दी एक जानदार भाषा है, वह जितनी बढ़ेगी उतना ही लाभ होगा।
-जवाहरलाल नेहरू

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हमारी राष्ट्रभाषा की गंगा में देशी और विदेशी सभी शब्द मिलकर एक हो जाएँगे।
-डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

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हिन्दी वह धागा है जो विभिन्न मातृभाषाओं रूपी फूलों को पिरोकर भारत माता के लिए सुन्दर हार का सृजन करेगी।
-डॉ० जाकिर हुसैन

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हिन्दी देश की एकता की ऐसी कड़ी है जिसे मजबूत करना प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य है।
-इन्दिरा गाँधी

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हिन्दी अब सारे देश की राष्ट्रभाषा हो गई है। उस भाषा का अध्ययन करने और उसकी उन्नति करने में गर्व का अनुभव होना चाहिए।
-वल्लभ भाई पटेल

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हिन्दी के बिना भारत की राष्ट्रीयता की बात करना व्यर्थ है।
-वी.वी.गिरि

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हिन्दी सीखने का कार्य ऐसा त्याग है जिसे दक्षिण भारत के निवासियों को राष्ट्रहित में करना चाहिए।
-एनी बिसेन्ट

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मेरे देश में हिन्दी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता।
-विनोबा भावे

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अमरभारती की इस लाड़ली 'हिन्दी` के स्वरों में भारत की राष्ट्रीय आत्मा बोलती है।
-डॉ० सम्पूर्णानन्द

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हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है।
-मैथिलीशरण गुप्त

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हिन्दी की उपेक्षा से देश का भविष्य अन्धकारमय हो जाएगा।
-महादेवी वर्मा

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हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का श्रोत है।
-सुमित्रानन्दन पन्त

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हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
-माखनलाल चतुर्वेदी

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संस्कृत माँ, हिन्दी गृहिणी और अग्रेजी नौकरानी है।
-डॉ० कामिल बुल्के

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हिन्दी राष्ट्रीयता के मूल को सींचती है और दृढ़ करती है।
-पुरुषोत्तमदास टण्डन

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हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है।
-डॉ० प्रभाकर माचवे

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